बचपन की यादें: जब पूरा परिवार साथ बैठकर खाता था
🍽️ बचपन की यादें: जब पूरा परिवार साथ बैठकर खाता था
आज जब मोबाइल की स्क्रीन पर आँखें टिक जाती हैं और अकेले खाने का चलन बन चुका है, तब मन बार-बार उस पुराने समय को याद करता है — जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाता था। वो दौर अलग ही था, जब खाने का स्वाद सिर्फ रसोई से नहीं, बल्कि साथ बैठने से आता था।
👨👩👧👦 1. एक थाली में कई कहानियाँ
बचपन में जब सब लोग जमीन पर चटाई बिछाकर या चौकी के चारों ओर बैठते थे, तो सिर्फ खाना नहीं होता था — वहाँ किस्से-कहानियाँ, हँसी-मज़ाक, और ढेर सारा प्यार भी परोसा जाता था। दादी की बातों में पुराने ज़माने की खुशबू होती थी और पापा की हँसी घर को गूंजा देती थी।
🍛 2. माँ के हाथों का स्वाद और सबका इंतज़ार
माँ की बनाई रोटियों की खुशबू जैसे पूरे मोहल्ले को अपनी ओर खींच लेती थी। हम सब भाई-बहन माँ के साथ-साथ रसोई से झाँकते कि खाना कब परोसा जाएगा। फिर जब सभी की थालियाँ सजी होतीं, तो सबको एक-दूसरे की प्लेट से खाना चखने का मज़ा ही अलग होता।
🕯️ 3. बिजली गई? चलो मोमबत्ती में खाना खाते हैं!
कई बार बिजली चली जाती थी, और फिर मोमबत्ती या लालटेन की हल्की रौशनी में खाना खाया जाता था। वो पल डर के नहीं, बल्कि रोमांच और साथ की वजह से हमेशा के लिए यादगार बन जाते थे।
💬 4. आज का खाना कैसा लगा?
खाने के बाद दादी ज़रूर पूछतीं – "आज की सब्ज़ी कैसी लगी?" और हम सब अपनी-अपनी राय देते, कभी झूठी तारीफ, कभी सच्चा प्यार। यही छोटी-छोटी बातें रिश्तों को मजबूत बनाती थीं।
🌟 निष्कर्ष: वो पल फिर से लौट आएं…
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में शायद वो शामें फिर से ना लौटें, लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे दिलों में बसी रहेंगी। कोशिश करें कि कभी-कभार ही सही, परिवार के साथ बैठकर खाना खाएं, बिना किसी स्क्रीन के।
क्योंकि खाना तो रोज़ खाया जाता है, पर “एक साथ बैठकर खाना” — वो एक त्योहार जैसा होता है।

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